नमस्ते इंडिया न्यूज
 अजय तावरे
 पांढुर्ना 

          कल कलेक्टर सभाकक्ष में विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मनाया गया। इस अवसर पर 1947 में हुए भारत पाकिस्तान बंटवारें के वक्त भारत में आए शरणार्थियों के परिजनों से कलेक्टर अजय देव शर्मा ने चर्चा की। हालांकि आज पाकिस्तान से भारत आए लोगों में इक्का दुक्का शरणार्थी जीवंत है। इस अवसर पर यू ट्यूट चैनल के माध्यम से एकत्र परिजनों को बंटवारे के समय भारत आए लोगों का दुख दर्द बताया गया। 


        कलेक्टर महोदय ने बताया कि यह दिन भारत पाकिस्तान के बंटवारे के समय मारे गए लाखों लोगों की याद में मनाया जाता है। इन्होंने कहा कि बंटवारे की दास्तां कभी नहीं भुलायी जा सकती है।

       समारोह में उपस्थित जुगल किशोर नागपाल एवं प्रेम बुधराजा ने उस समय की परिस्थिति  पर प्रकाश डाला। अंत में सभी उपस्थितजनों ने बंटवारें के समय मारे लोगों को दो मिनट का मौन धारण कर श्रद्धांजलि अर्पित की। 

दर्शनाबाई ने बंटवांरे का दर्द किया बयां

       पांढुर्ना के प्रतिष्ठित व्यापारी शाम बतरा की माता श्रीमती दर्शना बतरा (89) ने बंटवारे का दर्द याद करते हुए बताया कि उस वक्त उनकी आयु 10-12 वर्ष की थी। वह अपने भरेपूरे परिवार के साथ पाकिस्तान के जंग जिले में निवास करते थे।

     
         इनके पिता का नाम टेकचंद जूनेजा था और इनके देवर और बुआ भी वहीं रहती थी। पाकिस्तान में दर्शना के पति का नीजी खेत और नीजी मकान था। घर में गाय, भैंस और खेती की सभी सामग्री थी। 


       लेकिन 1947 के समय वहां पर आततायईयों ने मारकाट मचा दी थी। इसलिए हम पंजाबियों का काफिला पैदल ही सब कुछ छोडकर फिरोजपुर छावनी तक अनेक किमी दूर तक पैदल चलकर आया।  इसके बाद काफिला ट्रेन में सवार होकर भारत आया था।


        इनका परिवार ने काफी दिन हरियाणा के करनाल में बिताने के बाद सब लोग दिल्ली आ गए। दर्शनाबाई को याद है कि दिल्ली में उस वक्त के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का आवास हजारों शरणार्थियों ने घेर लिया था और उनसे मुलाकात की थी।


        दिल्ली में इनका विवाह बंसीलाल बतरा से हुआ और फिर वह उनके पांढुर्ना आ गई। इन्होंने बताया कि पांढुर्ना, छिंदवाडा और जुन्नारदेव में जंग जिले से आए काफी शरणार्थी परिवार बसे है।